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वह भ्रमर सुगंधी के लिएखिले हुए कमल दल पर आ बैठा । बैठते ही कमल संकुचित हो उठा । और
भ्रमर सुगन्ध की लीनता में लीन होते ही फँस गया
!
तभी कहीं से एक हाथी पानी पीने आया ।
और
मदोन्मत्त बन उस कमल को उसने उछाल फेंका,
भ्रमर मारा गया,
सुगंध की मौज उसे महँगी पड़ी । प्राण गँवाने जो पडे...!
प्रभो !
इस दृश्य से मैं सावधान हो गया । पर पदार्थ की प्रीति पतन का पथ है । जबकि तुम्हारे प्रति का स्नेह-पथ सुहावना है।
अतः
हे जीवन श्रृंगार ! बस, इसीलिए कहता हूँअब मैं तेरे साथ ही प्रीति रखूँगा ।
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शिक
का
गाउ
किड
हे नवकार महान