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६५. अदृश्य
नयनातीत नाथ नवकार !
नयन बैरी की बात क्या करनी ? जहाँ तहाँ तिरछी आडी नजर डाला करता है। इतना ही नहीं, बल्कि अपने संबंधियों को भी उत्तेजित करता है। यदि इसकी न माने तो हड़ताल की धमकी देते नहीं अचकाता। और बैठे बिठाये दैनिक कार्यक्रम में अव्यवस्था उत्पन्न कर देता है। यदि कहीं अच्छा देख लें या कोई आकर्षण पड जाय तो... बस, इसको रख लूँ ! इसे बसा लूँ !! इन्हें अपने में समेंट लूँ !!! पर दुःख की बात तो यह है कि प्रभो ! इसे आपकी मूर्ति पसंद नहीं। आपका रूप पसंद नहीं। परन्तु नारी के रूप में.... सौंदर्य में मोहित हो जाते देर नहीं लगती। नयन को किसी ललना के नयन निहारना मत अच्छा लगता है।
हे नवकार महान
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