Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 82
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org और भी अधिक मुखरित वन व्यथित करती है, और मुझे यह व्यथा.... वेदना.... सचमुच खूब अच्छी लगती है । ६०. अमावस्या राहू से वह दब रहा है । भला ऐसे में वह पृथ्वी को प्रकाशित कर स्नेह कैसे प्राप्त करें ? प्रिय नवकार ! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुर गुप्त ज्योति नवकार ! आज अमावस्या की महा श्यामला रजनी है । रजनी पति चन्द्र आज कलाविहीन बन गया है। उसकी स्नेहमयी एक भी किरण प्रकाश विखेरती नजर नहीं आती । वस्तुतः मेरा भी यही आज बेहाल है । अनादि अनन्त काल से मेरी चन्द्र जैसी सौम्य आत्मा अज्ञान राहू से दब गई है । इस श्यामला रात्रि में बुध गुरु शुक्र के तारे मात्र झिलमिलाते हैं... टिमटिमाते हैं । और प्रकाश के कुछ कण बिखेर जाते हैं मेरा प्रयाण महा विकट है फिर भी ? हे नवकार महान ६९ For Private And Personal Use Only

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