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वहीं बहुत वर्षों के जीर्ण-शीर्ण पुराने पंचाग हाथ लगे। पन्ने पर पन्ने उलटने लगा। प्रेम मिलन के प्रथम दिन का ज्योतिष जानने की मन में अजीब हक उठी। रवियोग, स्थिरयोग, अमृत-सिद्धि योग था। द्वि-स्वभाव लग्न और चन्द्र श्रेष्ठ था। दिन शुद्धि, लग्न शुद्धि, योग सिद्धि होरा शुद्धि थी। फिर भी विरह वेदना की बाधा कहाँ से आ पड़ी? और विरह वेदना का गणितचक्र निकालने लगा। स्वातिनक्षत्र, मंगलवार, मृत्युयोग और भद्रा ! मैं हर्ष विमोर हो उठा। जोशोखरोश से रोंगटे फडक उठे नाथ, तुम भले ही चले गये....। किन्तु यह गणित चक्र कहता है: 'तुम्हे आना ही होगा इसके सिवाय कोई चारा नहीं .... एक बार फिर आना ही होगा स्वाति नक्षत्र में गये हुये को लौटकर कर आना ही पडता है। तिस पर फिर मंगलवार, मत्युयोग और भद्रा ! इस लिए शंका के लिए कोई स्थान नहीं । अस्तु वह सब मेरे लाभ के लिए ही तो है।
हे नवकार महान
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