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तुम्हारे आगे खुशामद करूँगा, चरण पकडूंगा। प्रेम से प्रार्थना करूँगा ! बिनती करूँगा, झोली फैलाए खडा रहूँगा विनम्रता से नतमस्तक होकर । रोऊँगा, चिलूँगा, चिल्लाऊँगा फिर भी किसी दूसरे को प्रसन्न करने हेतु दीन-हीन नहीं बनूँगा ? दूसरे आज भले ही खुशामद से खुश होंगे किंतु जरासा विपरीत हुआ कि सब मिट्टी में मिल जाएगा जब कि तुम भूल को याद नहीं करते । सेवा को नहीं भूलते। क्षमा करते हो। स्नेह दान देते हो। इसलिये तुम ही मेरे प्राण सखा हो और प्रीतम भी!
५७. स्थिर योग
योगेश्वर नवकार ! विरह वेदना में तडपता छोडकर तू चला गया। शोक ही शोक में दिन पर दिन जाने लगे उदासीनता से मढ होकर नित्यप्रति तुम्हारा ही रटन मैं करता रहा ६४
हे नवकार महान
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