Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मैं जन्म-जन्मांतर भवों भव TET कि साथ छोड़ना नहीं चाहता । तुम और मैं, मैं और तुम ਜੀਜਾ ਸਾ एक दूसरे में परस्पर समा जायेंगे । शिफि तब एक अनुठा मनभावन समीकरण हो जाएगा । बोलो, मेरे जीवन साथी ! THE FIS BPIE अब तो बोलो !! अरे स्वामिन, कुछ तो बोलो तो ? मैं भटक भटक कर थक गया हूँ । अब नहीं भटका जाता सच, मुझे अपने चरणों में ले ले । अब तो ले ले ! ! प्राणपति ! नवकार ! ! क्या हररोज मुझे तुम्हें हाथ जोडने पडेंगे ? मुझे नतमस्तक होकर रहना पड़ेगा । किTIC क्या ? इस तरह खड़ा रहना पड़ेगा ? अपने में विलीन कर दे, प्रभो लीन कर दे। क के Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नि राण की ५२. आप न आये दीनानाथ कृपालु नवकार ! आपने मुझे वचन दिया था ! मैं तुमसे मिलने अवश्य आऊँगा !लिक हे नवकार महान ५९ For Private And Personal Use Only

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