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पगले, यह तो बहुत ही अपूर्ण है.... सौ का एक हिस्सा भी नहीं। अतः जब कोई आकर तुम्हारा रहस्यमय गुढ स्वरूप पूछता है तो कह देता हूँ बेबाक होकर “मुझे ज्ञात नहीं। वे कहते हैं, 'तुम साधक हो न ?' मैं कहता हूँ 'दुनिया में धन कितना?' "इसकी गणना करने में हम समर्थ नहीं' 'मेरा उत्तर भी यही'मा और बिचारे उदास बनकर लौट जाते हैं। साथ ही मुझे भी उदास कर जाते है। प्रभो ! विभो ! तुम्हारे अनन्त स्वरुप का ज्ञाता मैं कब बनूँगा ...?
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५१. समावेश
शरणागत-वत्सल नवकार ! तुम मुझे अपने चरणों में ले ले। तुम्हें मैं अपने मन मन्दिर में रखेंगा। तुम्हारी पूजा-अर्चा करुंगा। तुम्हारा वन्दन करुंगा। तुम्हारी भक्ति-भाव से DEEP सेवा-सुश्रुषा करूँगा।
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हे नवकार महान
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