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अनिश प्रयत्न करूँगा। तुम्हारे अक्षय स्वरूप में लीन होने हेतु ही मैं गोता लगा रहा हूँ। मुझे अब नश्वर शरीर की कोई ममता नहीं चाहिये !
और ना ही इसका विचार मात्र भी !! फिर भी यदि पैदा हो जाएँ तो...! प्रारब्ध के अधीन रहकर तितिक्षा और उपशम द्वारा मन पर संयम प्राप्त करूँगा ! आज मैं सिर्फ इतना ही जी जानना और परखना चाहता हूँ किप्रिय नवकार ? तुम मेरी रक्षा करते हो या नहीं ?
४९. अंशु बंधन
प्रिय सखा नवकार ! एक बार मैं तेरा दरबार देखने चला आया । मुझे आशा नहीं थी कि मैं तुम पर मोहित हो जाऊँगा। तुमने अपनी मृदु वाणी से मुझे उपदेश दिया, मेरे कोमल हृदय ने उसका स्नेह से पय पान किया। उसमें भरा था आश्चर्य जनक जादू !
हे नवकार महान
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