Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिर्फ अन्तर के भाव समर्पित किये हैं । वह भी अधूरे। फिर भी इस अधूरे अन्तःकरण के भाव से मैं आनेवाले भव में तुम्हारी अधूरी पूजा । भक्तिभाव से पूरी कर सकूँ ऐसा स्वांग चाहता हूँ। प्राणसखा ! मेरी आँखे बन्द हो रही हैं। रक्त की गति शिथिल बन गई है। नाड़ियाँ, तड़ तड़ टूट रही हैं । हृदय निःशब्द होने की तैयारी में है। ना......थ...! प्र....भो ! तेरी अधूरी पूजा को भक्तिपूर्वक पूरी करूँ ऐसा ही स्वांग/भव मिले । मे....रे प्रि....य....त....म....? moneleOAD २०. प्रेम का दूत समाधिमरण नवकार! आप कब आओगे ? आपके आने से क्षणार्ध में मेरे सब द्वंद्व मिट जायेंगे। लेकिन मेरे मन पर कोई दूसरे बोझ डालेंगे। हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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