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किन्तु इसमें भी कहीं कहीं सुख के खद्योत...जुगनु अवश्य चमक-दमक जाते हैं। मैं उसे अपनी गिरफ्त में लेने के लिए आगे बढ़ने का विचार करता हूँ। किन्तु... पाँव रखते ही काँटे चुभ गये । आगे बढ़ते ही आया गहरा गढ्ढा ! होश में और जोश में आनन-फानन में उस गढ्ढे को कूद गया। परन्तु... सहसा खद्योत...जुगनु का चमकना बंद हो गया। तभी अचानक कोई अज्ञात योगी आकर कानमें धीमे से कहता है: "भद्र ! संसार में सुख नहीं । फिर भी नवकार आनन्द और उल्लास प्रणेता है। वह प्रमोद और हर्ष का दाता है !! नवकार की शरण में जा !!!" इस प्रकार की भाग-दौड से कुछ नहीं होगा। अचकते और अनमने मन से मैंने बात मानी। और आया तुम्हारे चरणों की शरण में। चमत्कार घोर चमत्कार ! सुखे के खद्योत-जुगनु पूर्ववत सर्वत्र उडने लगे।
हे नवकार महान
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