Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सुख-दुःख का भार कन्धे पर उठाकर सदा ढोता रहा हूँ । आओ, और मुझ से बात करो; मुझे अपने गलेसे लगा लो ! मैं जो कुछ भी हूँ ! मेरा जो कुछ भी है ! मैंने जो 'कुछ भी जीवन में किया ! मेरा प्रेम, मेरी आशा सब ही, रहस्यपूर्ण मार्ग द्वारा अर्जित धन-संपत्ति केवल तुम्हारी है, सिर्फ तुम्हारे लिए ही है । तुम्हारी एक मात्र मुस्कान पर मेरा संपूर्ण जीवन समर्पित हो जाएगा ॥ मेरा काया-महल, मैं त्याग दूंगा । ओ मरण, तुम आओ तो . . . ! और मुझसे तनिक बातें तो करो । ही Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिलंकी ४०. नई यात्रा IPE FEFRI ॐ कोटि मंगलमय नवकार ! परमात्मा ने मुझे अपने पास बुला लिया है। कारण ? उसके दरबार में एक गायक की जरूरत जो है । अतः उनकी कृपा-दृष्टि मुझ पामर पर पड़ी है । हे नवकार महान ४७ For Private And Personal Use Only ACCO

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