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सुख-दुःख का भार कन्धे पर उठाकर
सदा ढोता रहा हूँ । आओ, और मुझ से बात करो; मुझे अपने गलेसे लगा लो !
मैं जो कुछ भी हूँ !
मेरा जो कुछ भी है !
मैंने जो 'कुछ भी जीवन में किया ! मेरा प्रेम, मेरी आशा सब ही, रहस्यपूर्ण मार्ग द्वारा अर्जित धन-संपत्ति केवल तुम्हारी है, सिर्फ तुम्हारे लिए ही है ।
तुम्हारी एक मात्र मुस्कान पर मेरा संपूर्ण जीवन समर्पित हो जाएगा ॥
मेरा काया-महल, मैं त्याग दूंगा । ओ मरण, तुम आओ तो . . . ! और मुझसे तनिक बातें तो करो ।
ही
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शिलंकी
४०. नई यात्रा
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ॐ कोटि मंगलमय नवकार !
परमात्मा ने मुझे अपने पास बुला लिया है। कारण ?
उसके दरबार में एक गायक की जरूरत जो है । अतः उनकी कृपा-दृष्टि मुझ पामर पर पड़ी है ।
हे नवकार महान
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