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४२. जीवन सरोवर
प्रिय प्रियतम नवकार ! यदि जीवन सरोवर सुख जाय, हृदय कमल की पंखुडियाँ मुरझा जाय, तब तुम करुणा के बादल को अपने साथ ले आना। यदि जीवन का माधुर्य कटता के मरुस्थल में परिवतित हो जाय, तब तुम गंगा बनकर आकाश से भूमंडल पर उतर आना। यदि संसार के कार्यों का कोलाहल दशों दिशाओं में निनादित हो । और मुझे अपनी मर्यादा के घेरे में कैद कर दे, तब ओ प्रशान्त प्रभु ! तुम मेरे पास शांति का सेनानी और विश्राम का दूत बनकर आना । यदि वासनायें अपनी प्रचण्ड प्रतापी धूल और भभक भरी लालसाओं से मुझे अंधा बना दें, तब हे भगवान ! अपनी तेजस्विता और ओजस्वी प्रकाश की सेना के साथ जीवन जगती पर टूट पडना । ताकि मैं बच जाऊँ और सदा सर्वदा के लिए तुम्हारा चाकर बन, पूजन अर्चन में निमग्न हो जाऊँ...!
हे नवकार महान
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