Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४१. अंतिम वार्ता प्रिय वल्लभ नवकार ! कहने जैसा बहुत कुछ कह दिया । माँगने जैसा बहुत कुछ माँग लिया । आप ज्ञानी हो, अन्तर्यामी हो । अतः सब जानते हो । फिर भी बावलेपन से कहने से नहीं रोक सकता अपने आपको । हे नवकार महान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रयाण कर रहा हूँ । वहाँ मेरा मुख सदैव आपकी तरफ ही रहे, मोह मद के आवर्त में न फँस जाएँ ! काम क्रोध के कादव में कहीं न घिर जाएँ ! ! मान-माया के पाश में न जकड जाएँ !!! अब एक अन्तिम बात कह दूँ । बात न कहूँ तब तक अशांति तन मन में रहेगी, बेचैनी कसोटती रहेगी और उद्दिग्नता निरंतर बढती रहेगी । लो, सुन लो ! मेरे प्रियवल्लभ ! ! अब मैं परलोक गमन के लिए म For Private And Personal Use Only ४९

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