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४१. अंतिम वार्ता
प्रिय वल्लभ नवकार !
कहने जैसा बहुत कुछ कह दिया । माँगने जैसा बहुत कुछ माँग लिया । आप ज्ञानी हो, अन्तर्यामी हो ।
अतः सब जानते हो ।
फिर भी बावलेपन से कहने से नहीं रोक सकता अपने आपको ।
हे नवकार महान
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प्रयाण कर रहा हूँ ।
वहाँ मेरा मुख सदैव आपकी तरफ ही रहे, मोह मद के आवर्त में न फँस जाएँ !
काम क्रोध के कादव में कहीं न घिर जाएँ ! ! मान-माया के पाश में न जकड जाएँ !!!
अब एक अन्तिम बात कह दूँ ।
बात न कहूँ तब तक अशांति तन मन में रहेगी, बेचैनी कसोटती रहेगी और उद्दिग्नता निरंतर बढती रहेगी ।
लो, सुन लो ! मेरे प्रियवल्लभ ! !
अब मैं परलोक गमन के लिए
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