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४४. पुष्प की प्रार्थना
का पुष्पपति अनाथगति नवकार ! शीघ्र करो प्रभु ! शीघ्र करो !! इसे तोड लो! विलम्ब न करो !! कहीं यह धूल में न मिल जाए, बस इसका भय है। मेरे इस मन बगीचे में पल्लवित सद्भाव पुष्प को आपकी माला में स्थान मिलेगा? कौन जाने ? तब भी अपने चरण पद्मों के स्पर्श से इसे भाग्यवान बना लो। विलम्व न करो प्रभु ! दिन पूरा होते देर न लगेगी। और अन्धेरा छा जाएगा सर्वत्र ! आपकी पूजा का समय निकल नहीं जाए, यही एक भय है। इसमें जो थोडा बहुत रंग है, जो थोडी बहुत सुवास है; वह आपकी सेवा-महूर्त बाकी हैसिर्फ तब तक ही है। अतः इसको स्वीकार कर लो ! विलम्व करना अच्छा नहीं ! पुष्प तोड़ लो, चरणों में स्वीकार लो, कृपा कर अब देर न करो मेरे स्वामिन !
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हे नवकार महान
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