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इस अनोखे आनन्द और उमंग की घडी में मख से अनायास निकल गया : "दुःख भरे संसार में कि प्रियतम नवकार। यदि तुम न होते तो,..? सुख कहाँ से होता?"
३१. अंजन शलाका
ज्ञानेश्वर नवकार !
आपके कमलदल सम विपुल नयनों में । मैं अंजन करुंगा। स्वर्ण, रजत, मक्ता, धनसार, बरास और गौधत आदि उत्तम द्रव्यों के पेषण और मिश्रण से मैंने अंजन तैयार किया है।
और स्फटिक रत्न के कटोरे में इसे प्रेम से भरा है। साथ ही अंजन करने के लिए आवश्यक नीलमणि रत्न की शलाका भी तैयार की है। प्रभो ! महर्त की घटिका निकट आ गई है। अब मैं स्नेह भरते कामनगारे नयनों में . अंजन लगाऊँगा। आपका अंजन करने के माध्यम से मेरे अज्ञान
हे नवकार महान
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