Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभो ! मेरे प्रभो ! भला यह दिन कब आयेगा? बताओ न, वह नई नवेली भोर कब आएगी ? ३४. स्नेह आदान कामघट कानधेनु नवकार ! एक वार मध्य रात्रि में अचानक नींद उचट गयी और मैं जाग पडा । चारों ओर दृष्टि डाली, किन्तु भयानक अन्धेरा। हाथ को हाथ न सुझे। कहीं कुछ दिखायी न दें। दीपक तो था ? तो क्या बुझ गया होगा ? मैं मन्थ रगति से दीपक के पास गया। ध्यान से उसे देखा। ओह ! दीपक में स्नेह तेल नहीं ! विना स्नेह भला वह प्रकाश कहाँ से देगा ? दीपक के बिना सर्वत्र अन्धकार होता है वैसे ही नाथ, मेरे हृदय-कुन्ज में अन्धकार है। मुझमें मैत्री भाव का स्नेह नहीं । किन्तु तुम मिले.. एक नई आशा ने अंगडाई ली कि, हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126