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प्रभो ! मेरे प्रभो ! भला यह दिन कब आयेगा? बताओ न, वह नई नवेली भोर कब आएगी ?
३४. स्नेह आदान
कामघट कानधेनु नवकार ! एक वार मध्य रात्रि में अचानक नींद उचट गयी और मैं जाग पडा । चारों ओर दृष्टि डाली, किन्तु भयानक अन्धेरा। हाथ को हाथ न सुझे। कहीं कुछ दिखायी न दें। दीपक तो था ? तो क्या बुझ गया होगा ? मैं मन्थ रगति से दीपक के पास गया। ध्यान से उसे देखा।
ओह ! दीपक में स्नेह तेल नहीं ! विना स्नेह भला वह प्रकाश कहाँ से देगा ? दीपक के बिना सर्वत्र अन्धकार होता है वैसे ही नाथ, मेरे हृदय-कुन्ज में अन्धकार है। मुझमें मैत्री भाव का स्नेह नहीं । किन्तु तुम मिले.. एक नई आशा ने अंगडाई ली कि,
हे नवकार महान
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