________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मैत्री भाव का स्नेह अवश्य मिलेगा
और तुम से स्नेह खरीदने हेतु रात दिन मुद्राओं का सन्चय करता रहता हूँ। दोगे न, स्नेह दान, तेरा जाप ही मेरी रजत मद्रा है। और तेरा ध्यान ही मेरी स्वर्ण मद्रा है।? अब तो मैत्री भाव का स्नेह दान मिलेगा न ?
३५. चाह
शिवंकर शुभंकर नवकार !
आप जब मेरे घर में आये हो तो कृपाकर कभी लौटकर चले न जाना, अब तो मुझे आपकी ही चाह है। यह चाह शुद्ध है, निष्काम है। मेरा अन्तःकरण पुकार पुकार कर कह रहा है। जो दूसरी चाह थी वह सर्वथा मिथ्या है। निस्सार है, निष्प्रयोजन है। आपकी चाह ही सत्य है । शिव है !! सुन्दर है !!!
AL
हे नवकार महान
For Private And Personal Use Only