Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कई बार जो नहीं माँगना चाहिए वही माँग लेता हूँ । एक और जो माँगना चाहिए वह प्रायः 市 भूल जाता हूँ । रोगी को भला क्या समझ कि पथ्य क्या है और अपथ्य क्या है ? INF वह तो अपथ्य माँगता है । लेकिन वैद्य या स्नेही उसे अपथ्य नहीं देते । फिर भले ही वह रोये या चाहे जैसी बकवास करें । साथ ही उसे तिरस्कृत भी नहीं करते, भविष्य में सुखी निरोगी बनें, ऐसा भाव हमेशा मन में संजोये रहते हैं । क्षणिक दया के वशीभूत होकर उसका शरीर नहीं बिगाड़ते । नाथ ! मैं भी एक दर्दी हूँ... रोगी हूँ - और एक ही चीज माँगता हूँ। “भवो भव तुम्हारे चरणों की प्राप्ति हो । और मैं स्नेहपूर्वक उनकी सेवा किया करूँ । यदि तुम्हारे चरणों मैं मुझे स्थान मिलेगा तो मैं ज्यादा बीमार हो जाऊँगा । दुःख विव्हल पीडित वन, बेहाल हो जाऊँगा । नाथ ! ि तुम्हारे चरणों की पूजा मिले BF हे नवकार महान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक् ट ७३.३ For Private And Personal Use Only

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