Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यह सोच कर कि, भयमंजन | AC तुम मुझे अवश्य साथ दोगे और गिरों को ऊपर उठाओगे । प्रभो ! तुम एक राष्ट्र के महान् हो । मैं भी एक राष्ट्र का महान् हूँ । मेरा राष्ट्र, तुम्हारे राष्ट्र में मिला देने की तीव्र भावना है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और दो राष्ट्रों के महान् व्यक्ति गम्भीर विषय की चर्चा के लिए प्रायः गुप्तस्थल पसन्द करते हैं । वह स्थल निहायत सुरक्षित एवं सुन्दर होना चाहिए । मुझे तो महारिपु से द्वंद्व करना है । इसीलिए मैं तुम से मुलाकात चाहता हूँ । बोलो प्रभु ! किस स्थल पर मंत्रणा के लिए चला आऊँ ? और यदि आप स्थान निश्चय का कार्य भी मुझ पर छोड़ दें तो, मैं गुप्त स्थान बताऊँ । वहाँ पर मैं सब प्रकार की ३० व्यवस्था करवा दूँगा । और वह गुप्त स्थान है मेरा मनो-मंदिर ! जहाँ किसी का प्रवेश नहीं है । और ना ही रहस्य-भेद का डर है । प्रभो, बोलो ! For Private And Personal Use Only for हे नवकार महान

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