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२६. मुलाकात
रक्षणकर्ता नवकार !
आज मेरी अन्तर- राजधानी पर महाशत्रु चढ आये हैं ।
मोह-महिपति इन शत्रुओं का राजा है । राग और द्वेष उसके दो महा सेनाधिपति हैं । इनकी देख-रेख में, नियंत्रण तले, सैन्य सागर समान है ।
इन्होंने एक साथ असंख्य अनगिनत संख्या में हमला कर मेरी राजधानी में
हाहाकार मचा दिया है । जीवन-वाहिनी को संघर्ष की आग में झोंक दिया है ।
भाग-दौड़ और 'त्राहिमाम्' 'त्राहिमाम्' के चित्कार रह-रहकर मेरे कानों के पर्दे फाडे जा रहे हैं ।
मेरी चिन्ता का वारापार नहीं ।
गुर
हृदय- मेरु काँप रहा है । शरणागति के बिना और कोई चारा नहीं । लेकिन शत्रु के अधीन होने को मन नहीं
मानता ।
ऐसी भीषण और भयानक आपत्ति के समय मैंने महायता के लिये आपको याद किया है।
हे नवकार महान
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प्री
पु
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