SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६. मुलाकात रक्षणकर्ता नवकार ! आज मेरी अन्तर- राजधानी पर महाशत्रु चढ आये हैं । मोह-महिपति इन शत्रुओं का राजा है । राग और द्वेष उसके दो महा सेनाधिपति हैं । इनकी देख-रेख में, नियंत्रण तले, सैन्य सागर समान है । इन्होंने एक साथ असंख्य अनगिनत संख्या में हमला कर मेरी राजधानी में हाहाकार मचा दिया है । जीवन-वाहिनी को संघर्ष की आग में झोंक दिया है । भाग-दौड़ और 'त्राहिमाम्' 'त्राहिमाम्' के चित्कार रह-रहकर मेरे कानों के पर्दे फाडे जा रहे हैं । मेरी चिन्ता का वारापार नहीं । गुर हृदय- मेरु काँप रहा है । शरणागति के बिना और कोई चारा नहीं । लेकिन शत्रु के अधीन होने को मन नहीं मानता । ऐसी भीषण और भयानक आपत्ति के समय मैंने महायता के लिये आपको याद किया है। हे नवकार महान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्री पु २९ For Private And Personal Use Only
SR No.008712
Book TitleHe Navkar Mahan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherPadmasagarsuriji
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy