Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बालक तुतलाता बोलता है । उसमें नई रचना या व्याकरण नहीं होती । फिर भी वह सबको आनन्दित करता है न ? क्योंकि उसमें सरलता, निखालसता वसती है ! स्नेह भरे शब्द चाहे कितने विलंब से और चाहे जिस प्रकार बोले जायें, तो भी वे महाआनन्द को जागृत कर जाते हैं ! सर्व का स्नेह प्राप्त कर जाते हैं !! उसी प्रकार प्रियतम प्रभो मैं तेरे पास स्नेह प्राप्त करूँगा । उस स्नेह से मेरे में सर्वात्म भाव प्रगट होगा । प्रभो, 'दीप से दीप प्रगट होते हैं' तेरे अखण्ड जगमगाते मंगल दीप से मेरे ज्ञान दीप को प्रकाशित कर । ताकि स्नेह के सुनहरे प्रकाश में मैं सर्व को स्नेहासक्त बने देख सकूँगा !! २५. विदाई Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वम्भर प्रभो नवकार ! मैं जानता हूँ, भलीभाँति जानता हूँ कि दिन दूर नहीं अब, जब वह पृथ्वी आँखों से ओझल हो जायेगी । आँख पर परदा तान सदा के लिए हे नवकार महान २७ For Private And Personal Use Only 88 田

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