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बालक तुतलाता बोलता है ।
उसमें नई रचना या व्याकरण नहीं होती । फिर भी वह सबको आनन्दित करता है न ? क्योंकि उसमें सरलता, निखालसता वसती है ! स्नेह भरे शब्द चाहे कितने विलंब से और चाहे जिस प्रकार बोले जायें,
तो भी वे महाआनन्द को जागृत कर जाते हैं ! सर्व का स्नेह प्राप्त कर जाते हैं !!
उसी प्रकार प्रियतम प्रभो
मैं तेरे पास स्नेह प्राप्त करूँगा ।
उस स्नेह से मेरे में सर्वात्म भाव प्रगट होगा । प्रभो, 'दीप से दीप प्रगट होते हैं' तेरे अखण्ड जगमगाते मंगल दीप से मेरे ज्ञान दीप को प्रकाशित कर । ताकि स्नेह के सुनहरे प्रकाश में मैं सर्व को स्नेहासक्त बने देख सकूँगा !!
२५. विदाई
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विश्वम्भर प्रभो नवकार !
मैं जानता हूँ, भलीभाँति जानता हूँ कि दिन दूर नहीं अब, जब
वह
पृथ्वी आँखों से ओझल हो जायेगी । आँख पर परदा तान सदा के लिए
हे नवकार महान
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