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मैं तुझ पर न्योछावर हो जाता हूँ। यह आरती मेरे स्नेह का प्रतीक है। स्नेह में जितना दे सकूँ उतना ही कम है ! अब मेरे पास मेरा कुछ रहा नहीं !! स्नेह में मैं भी अर्पण हो चुका हूँ !!! स्नेह मुख से नहीं बोला जा सकता !
और आँख से नहीं बताया जा सकता !! यह तो चित्त का अनभव है ! चित्त ही समझ सकता है ! तू सच्चिदानन्दमय है; इसलिये तू जान सकता है ! सुखकन्द ! यह आरती मेरे स्नेह का प्रतीक है ! तु इसे स्वीकारना ! मझे उबारना!!
RATORON
२४. मंगल दीप
प्राणप्रिय प्राणाधार नवकार ! कैसे और किन शब्दों में तेरी भक्ति हो सकती है ! इसका मुझे सही ज्ञान नहीं है। फिर भी मैं तेरे प्रेम को प्राप्त कर सकँगा? हृदय कहता है, साथ ही आत्मा साक्ष्य देती
हे नवकार महान
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