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६. उपहार
मेरे प्राणाधार नवकार !
निखिल भूमंडल पर स्थित हर व्यक्ति और जीव यथाशक्ति श्रद्धासिक्त मन से भक्तिभावपूर्वक आपको अच्छी अथवा बुरी भेंट... उपहार प्रदान करता रहता है ।
कोई चढाता है हीरे पन्ने और मुक्ताओं की दमकती माला तो कोई अर्पित करता है पुष्प सुगंधी रसाल !
कोई देता है फूल-फल युक्त रसाला !! जबकि मेरे पास है सिर्फ दुःख दर्द की हाला ! ! ! कृपावंत इसे स्वीकार कर मुझे कृत-कृत्य कर दे, मेरे जीवन को सुख-समृद्धि और वैभव से भर दे । परम आराध्य नवकार । इस दुनिया की रीत है कि जिसके पास जो हो वह खुले हाथ दे दे और वही वह देता है ।
अतः मेरे पास अपनी जो वर्षों की जमा-पूंजी थी, सहर्ष दे दी... आपकी सेवामें विनीत भाव से चढा दी ।
तुम परीक्षक हो, निरीक्षक हो और हो स्थितप्रज्ञ !
यदि मेरी तुच्छ भेंट उचित लगे,
आपके योग्य हो तो अवश्य स्वीकार लेना
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हे नवकार महान