Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 156 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. उपहार मेरे प्राणाधार नवकार ! निखिल भूमंडल पर स्थित हर व्यक्ति और जीव यथाशक्ति श्रद्धासिक्त मन से भक्तिभावपूर्वक आपको अच्छी अथवा बुरी भेंट... उपहार प्रदान करता रहता है । कोई चढाता है हीरे पन्ने और मुक्ताओं की दमकती माला तो कोई अर्पित करता है पुष्प सुगंधी रसाल ! कोई देता है फूल-फल युक्त रसाला !! जबकि मेरे पास है सिर्फ दुःख दर्द की हाला ! ! ! कृपावंत इसे स्वीकार कर मुझे कृत-कृत्य कर दे, मेरे जीवन को सुख-समृद्धि और वैभव से भर दे । परम आराध्य नवकार । इस दुनिया की रीत है कि जिसके पास जो हो वह खुले हाथ दे दे और वही वह देता है । अतः मेरे पास अपनी जो वर्षों की जमा-पूंजी थी, सहर्ष दे दी... आपकी सेवामें विनीत भाव से चढा दी । तुम परीक्षक हो, निरीक्षक हो और हो स्थितप्रज्ञ ! यदि मेरी तुच्छ भेंट उचित लगे, आपके योग्य हो तो अवश्य स्वीकार लेना For Private And Personal Use Only हे नवकार महान

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