Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. दिव्य संकेत प्रियतम नवकार ! मुझे भली भाँति विदित है और स्वीकार करता हूँ कि, यहाँ पत्ते-पत्ते और डाल-डाल पर जो चमक-दमक और अनुपम कांति है यह तुम्हारे दिव्य संकेत हैं । तुम्हारे ही कारण सुस्ताये आलसी बादल वरस बरस पडते हैं शीतल और शुद्ध समीर प्रकम्पित हो ; हर जन और हर मन को स्पर्श कर जाती है । और तो और मेरे मन में जो सुन्दरता, सहजता और सहृदयता है यह सब तुम्हारी परिस्थिति के ही दिव्य संकेत हैं । तुम्हारे शांत-प्रशांत मुखमंडल पर हल्की सी स्मित रेखा बिखर गयी । तुम्हारे नयन मेरे नयनों से टकराये । अनजाने ही परस्पर कुछ संकेत हुए || मेरी हृदय वीणा के तारों ने झंकृत हो, तुम्हारा अर्चन-पूजन किया । मेरे मस्तक ने नतमस्तक हो तुम्हारे चरण स्पर्श कर रज ग्रहण की और मैं धन्य हो उठा । प्रियतम ! यह भी तो तुम्हारा ही दिव्य संकेत है, मधुर, मृदुल संकेत | For Private And Personal Use Only हे नवकार महान

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