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१०. एक बार
दीनबन्धु दीनानाथ नवकार ! मेरी प्रार्थना एक बार स्वीकार कर ! सिर्फ एक बार !! मेरे हृदय मंदिर के आराध्य स्थान में बस जा। और ऐसा बस कि कभी जाने का नाम न लें। तुम्हारे विरह वियोग में जो दिन, घटिका और पल गया, वह सच, मिट्टी में मिल गया। अब तुम्हारी ही दिव्य ज्योति में सजग रह जीवन कली को विकसित करने हेतु सदा जागृत रहेगा। आज तक न जाने उन्माद और अभिमान में, किसी को ढूंढने, परखने और अपनाने हेतु मैं बावरा बन इधर-उधर निरुद्देश्य भटकता रहा। पता नहीं, कौन जाने? यह कैसे हुआ? किंतु अब मेरी धडकन सुन और परख । साथ ही इसमें रहा पाप-धन, छल-बल, व्यथा-विकार और मोह-जाल जो भी हैं.... उसे तुम जलाकर खाक कर दे। ताकि जो भी रहे...वह तुम्हारा मनभावन स्वरूप और संग ही हो। बस, एक बार सिर्फ इतना कर दे दो प्रभु, केवल एक बार...! महा
हे नवकार महान
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