Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आप नहीं आये ! जीवन में दुःख के साये घिर आये ! ! मन फूल रह गये मुरझाये ! ! ! किंतु आप नहीं आये. . . सो नहीं आये ! १४. महाभिनिष्क्रमण प्राणाधार नवकार ! मेरे प्राणाधार अब मुझे अपनी जीवन नौका का लंगर अवश्य उठाना होगा और पडाव पर पडाव करते हुए महाप्रस्थान करना पडेगा । आलस ही आलस में लम्बा समय गुजर गया और यों ही गुजरता जा रहा है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसन्त की मनभावन ऋतु का आगमन हुआ और वह चली भी गयी, पुष्प मुस्कराये और मुरझा गये । लेकिन न जाने किसकी प्रतीक्षा में यहाँ यों दिग्मूढ-सा किंकर्तव्यविमूढ बना खडा हूँ ? न ओर है न छोर, ना ही दिशा मार्ग का भान फिर भी खड़ा हूँ । न जाने क्यों किसलिए किसकी राह में ? पीले पत्ते हवा के जरा से झोंके से गिरने लगे हैं। और उनका स्थान नई कोंपल, नये अंकुरों ने यथास्थान ले लिया है। मुझे रह रह कर ये संकेत कर रहे हैं कि अब मेरे प्रस्थान का समय आ गया है। हे नवकार महान १५ For Private And Personal Use Only EP

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