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अस्तु । जैसे भी हो अनायास आपने मेरे आँगन को पवित्र किया है। उससे मैं हर्षविभोर हो उठा हूँ। ऐसे में आपका किस तरह उचित स्वागत करता ! मेरी समझ में नहीं आ रहा है। और खाली हाथ भी आपको भेजना ठीक नहीं। लो सन्माननीय अतिथि ! लो..... । लेते जाओ....॥ मेरे इस जीर्ण-शीर्ण पुराने शरीर को। इससे उत्तम भेंट मेरे पास दूसरी कोई नहीं है। सारी जिन्दगी जिसे मैंने मेरा मानकर जतन किया। सम्हाला, सजाया, सँवारा और जी भर जिसका रक्षण किया। उसे मैं आज उल्लासपूर्वक आपके पात्र में.... अर्पण करता हूँ। प्रभु स्वीकार करो। मुझे कृतार्थ करो। पावन करो। आपको मेरा वन्दन ।
हे नवकार महान
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