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३. वरदान ४
मैं तुम्हारी शरण में यह विनय लेकर नहीं आया
कि,
विपत्ति-आपत्तियों से मेरी रक्षा करो; किन्तु आपत्तियों के घेरे में घिर जाने के बावजूद मैं जरा भी भयभीत न बनूँ ।
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बल्कि सदा अटल-अचल बना रहूँ ऐसा वरदान अवश्य दो ।
अपने दुःख और पीडा से उत्पीडित चित्त की सांत्वना हेतु याचना नहीं करता; ना ही भिक्षा माँगता हूँ ऐसा तो वरदान अवश्य दो । संसार के उत्पीडन और घुटन से मुझे बचाओ ! मेरी रक्षा करो, यह भीख माँगने तुम्हारे द्वार निःसंदेह नहीं आया... किन्तु संसार-सागर तैर, पार लगने की शक्ति पाऊँ ऐसा तो वरदान अवश्य दो ।
मेरा भार हलका कर दो,
ऐसी प्रार्थना नहीं करता पर
भार वहन करने का बल मुझे प्राप्त होऐसा वरदान तो अवश्य दो ।
हे नाथ, सुख में तुम्हारा नित्य स्मरण करता रहूँ और दुःख में कभी विस्मरण नहीं करूँ, साथ ही साथ विश्व की समस्त नजरें भले ही मेरा उपहास करें 1
मैं जनमात्र के लिए उपेक्षा का विषय बन जाऊँ, फिर भी तुम्हारे प्रति कभी शंकाशील - उदासीन न बनूँ ऐसा तो वरदान अवश्य दो ।
हे नवकार महान
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