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दव्वसंगहनाश को प्राप्त नहीं होता, वह पुद्गल है। ऐसा वचन है।
वह दो प्रकार का है - अणुरूप और स्कन्धरूप। अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व ये पुद्गल के साधारण गुण हैं। स्पर्श, रस, रूप, गन्ध ये असाधारण गुण हैं। पर्याय गलन और पूरण स्वभाववाली है। बने हुए स्तम्भादि में गलन-पूरण नहीं होता है। क्यों नहीं होता है? वर्तमान में सूत्रतन्तु के द्वारा स्तंभ का प्रमाण लिया जाता है, सैकड़ों वर्षों के बाद भी वह उतनी भूमि में स्थित देखा जाता है।
अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलधुत्व, प्रदेशत्व, अमूर्तत्व और अचेतनत्व ये धर्म द्रव्य के साधारण गुण हैं। जीव और पुद्गल की गति में सहकारी बनना धर्म द्रव्य का विशेष गुण है। उत्पाद-व्यय उस की पर्यायें हैं।
अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलधुत्व, प्रदेशत्व, अमूर्तत्व और अचेतनत्व ये अधर्म द्रव्य के साधारण गुण हैं। जीव और पुद्गल की स्थिति में सहकारी बनना अधर्म द्रव्य का विशेष गुण है। उत्पाद-व्यय उस की पर्यायें हैं।
काल द्रव्य के अस्तित्वादि पूर्वकथित साधारण गुण जानने चाहिये। द्रव्यों का परिणमन कराना, उस का असाधारण गुण है।
आकाश द्रव्य के अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व [प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व] अमूर्तत्व, प्रदेशत्व, अचेतनत्व ये साधारण गुण हैं। सभी द्रव्यों को अवकाश देना, उस का असाधारण गुण है।
ऐसा प्रतिपादन करने पर उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक वस्तु का प्रतिपादन किया गया, कथन किया गया।। 1 ।।
भावार्थ : भगवान आदिनाथ शतेन्द्रों के द्वारा पूजित हैं। उन्होंने जीवअजीव द्रव्य का व्याख्यान किया है। ऐसे जिनेन्द्र को मैं मस्तक झुका कर नमस्कार करता हूँ।। 1 ।।