Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ दिव्वसंगह जीवाजीवप्यभेददो जीवाजीवप्रभेदतः । काल विजुत्तं णादव्वा पंच अस्थिकाया दु एतानि षड्द्रव्याणि कालरहितानि पञ्चास्तिकाया: ज्ञातव्याः दु पुनः । उत्थानिका : इन छह द्रव्यों में काल द्रव्य को छोड़ कर पाँच द्रव्य अस्तिकाय होते हैं, ऐसा कहते हैं - गाथार्थ : [ एवं ] इस प्रकार [जीवाजीवप्पभेददो ] जीव-अजीव के भेद से [ इदं ] यह [ दव्वं ] द्रव्य [ छष्भेयं ] छह प्रकार का [ दत्तं ] कहा गया है। [दु] और [ कालविजुत्तं ] काल को छोड़ कर [पंच ] पाँच [ अस्थिकाया ] अस्तिकाय [ यादवा ] जानने चाहिये 11 23 1 टीकार्थ: एवं पूर्व कथित प्रकार से उत्तं प्रतिपादित, वह क्या ? दव्वं द्रव्य इदं प्रत्यक्षभूत, कितने भेद हैं? छन्भेयं छह भेद, किस प्रकार ? जीवाजीवप्पभेददो जीव और अजीव के प्रभेद के कारण। कालविजुतं पादव्या पञ्च अस्थिकाया दु इन छह द्रव्यों में से कालरहित पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं, ऐसा जानना चाहिये। दु पुनः । भावार्थ : जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छह द्रव्यों में से काल रहित पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं || 23 ॥ विशेष : प्राप्त प्रति में एवं प्राप्त टीका में पञ्च शब्द का प्रयोग नहीं था । परन्तु गाथा छन्द के नियम को व अन्य पाठों को देख कर पञ्च शब्द दोनों में ही हम ने स्वीकार किया है। [सम्पादक ] ॥ 23 ॥ उत्थानिका : एतेषां पञ्चास्तिकायानामस्तिकायत्वं कथं सिद्धमित्याह 52

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121