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दमसंगह
चिह्नों से युक्त पुण्य होता हैं। पाप के कारण क्या है? पराणि पावं च असातावेदनीय, अशुभायु, अशुभनाम, अशुभगोत्र ये निश्चय से पाप हैं। भावार्थ : शुभ भावों से युक्त जीव पुण्य रूप होता है, अशुभ भाव से युक्त जीव पाप रूप होता है। सातावेदनीय, शुभायु, शुभ नाम व शुभ गोत्र ये पुण्य की प्रकृतियाँ हैं, इन से विपरीत सम्पूर्ण कर्म पापकर्म की प्रकृतियाँ हैं ।। 38 ॥ उत्थानिका : सम्प्रति पूर्वोक्तस्य मोक्षस्य कारणमाह - गाथा : सम्मइंसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं हवदि।
क्वहारा णिच्छयदो तत्तियमइओ णिओ अप्पा ।। 39 ।। टीका : हवदि भवति, किं तत् कारणं हेतुः कस्य मोक्खस्स मोक्षस्य कारणं, सम्मईसणणाणं चरणं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रम्। कदा? ववहारा व्यवहारनयापेक्षया, णिच्छयदो तत्तिय मइओ णिओ अप्पा निश्चयनयापेक्षया तत्त्रियात्मको निजात्मा दर्शन-ज्ञान-चारित्रस्वरूपो यदेव रत्नत्रयम् स एवात्मा तदेव रत्नत्रयमित्यर्थः। उत्थानिका : अब पूर्वकथित मोक्ष के कारण को कहते हैं - गाथार्थ : [ववहारा ] व्यवहार से [ सम्मइसणणाणंचरणं] सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्र [ मोक्खस्स ] मोक्ष का [ कारणं ] कारण [ हवदि] होता है। [णिच्छयदो] निश्चय नय से [ तत्तियमइओ] उन त्रितयात्मक [णिओ] निज [ अप्पा ] आत्मा [को मोक्ष का कारण जानो] ।। 39 || टीकार्थ : हवदि होता है, क्या होता है? कारणं हेतु होता है। किस का? मोक्खस्स मोक्ष का कारण होता है। सम्मइंसणणाणं चरणं सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र, कब? व्यवहार नय की अपेक्षा से। णिच्छयदो । तत्तिय मइओ णिओ अप्पा निश्चय नय की अपेक्षा से। णिच्छयदो तत्तिय ।
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