Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 94
________________ दव्यसंग्रह कहाँ कहा गया है? समय में अर्थात् जिनागम में। वह दर्शन क्या है? जं सामण्णं गहणं जो सामान्य ग्रहण अर्थात् वस्तु की सत्ता का अवलोकन करता है। किन का अवलोकन करता है? भावाणं पदार्थों का, किन को छोड़ कर? अविसेसऊण अड्डे अविशेष रूप से अर्थात् यह काला है, यह नीला है इस प्रकार पदार्थ का भेद न करते हुए अवलोकन करता है। शंका : यहाँ पर शंकाकार कहता है कि - दर्शन स्वभावभासक ज्ञान है और परार्थावभासक भिन्न भावों का सामान्य ग्रहण है। यह लक्षण दर्शन में कैसे घटित होता है? क्योंकि अवलोकन करना, ज्ञान का प्रयोजन है। समाधान : अब यहाँ निराकरण करने के लिए कहते हैं - णेव कट्टमायार जो दर्शन है वह प्रथम समय में "यह ऐसा है" इस प्रकार का भेद नहीं कर सकता है। जैसे जलस्नान कर के खड़े हुए पुरुष एकाएक सम्मुख में उपस्थित वस्तु का अवलोकन करने पर भेद नहीं कर पाते हैं। इसलिए दर्शन कहा है। उत्थानिका : इदानी दर्शनपूर्वकं ज्ञानमाह - गाथा : दंसणपुव्वं णाणं छदमत्थाणं ण दोण्णि उवओगा। जुगवं जम्हा केवलिणाहे जुगवं तु ते दो वि॥ 44॥ टीका : दंसणपुव्वं णाणं दर्शनपूर्वकं विषयविषयिणोः सन्निपातो दर्शनं तदनन्तरमर्थग्रहणं किंचिदिति ज्ञानं यथा बीजाङ्करौं। केषाम्? छदमत्थाणं - छद्मस्थानां किंचिद्दर्शनज्ञानावरणीययुक्तानाम्, तेषां च ण दोण्णि उवओगा जुगवं जम्हा दर्शनज्ञानोपयोगद्वयं युगपत् यस्मान तेषां अतो दर्शनपूर्वकं ज्ञानं बीजाङ्करवत्। केवलिणाहे तु केवलज्ञानयुक्त | पुनः जुगवं तु ते दो वि युगपत्तौ द्वौ भास्करप्रकाशप्रतापवत्। | 811

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