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दग्धसंगह ध्याता मन्त्रवाक्यों का ध्यान करता है। पैंतीस, सोलह, छह, पाँच, चार, दो या एक अक्षर का मन्त्र ध्याता के द्वारा ध्याया जाता है। मन्त्र का विशेष वर्णन टोका में किया जा चुका है। इन मन्त्रों के अतिरिक्त मन्त्रों का जप या ध्यान गुरु के उपदेश से ही करना चाहिये ।। 49 ।। पाठभेद: जवह झाएह : जयह ज्झाएह 4 ||
उत्थानिका : इदानों कः कथंभूतो ध्येय इत्याह - गाथा : णट्ठचदुघाइकम्मो दसणसुहणाणवीरियमईओ।
सुहदेहत्थो अप्पा सुद्धो अरिहो विचिंतिजो॥50॥ टीका : विचिंतिज्जो विशेषेण चिन्तनीयो भवति, भवतां भो शिष्याः! कोऽसौ? अप्पा स्वात्मा, कथंभूतः? अरिहो अर्हत्स्वरूपः, पुनः कथम्भूतः? सुद्धो शुद्धात्मस्वरूपो द्रव्यभावकमरहितः। पुनः किं विशिष्ट :? सुहदेहत्थो सप्तधातुरहित: पुन: किं विशिष्ट :? णट्ठचदुधाइकम्मो नष्ट चतुर्घातिकाः , पुनः किं विशिष्ट :? दंसणसुहणाणवीरियमईओ अनन्तदर्शनसुखज्ञानवीर्यमयः, समवशरणविभूतियुक्तो ह्यात्मा ध्येय इत्यर्थः । उत्थानिका : अब कौन, कैसा ध्येय है? उसे कहते हैं - गाथार्थ : [णढचदुधाइकम्मो ] जिन्होंने चार घातिया कर्म नष्ट कर दिये हैं [दसण सुहणाणवीरियमईओ ] जो दर्शन, सुख, ज्ञान और वीर्यमय हैं, [सुहदेहत्थो ] जो शुभ देह में स्थित हैं, वह [ सुद्धो] शुद्ध [ अण्णा ] आत्मा [अरिहो] अरिहन्त है। वह [विचिंतिजो ] ध्यान करने योग्य है।। 50 ।। टीकार्थ : विचिंतिज्जो - भो शिष्यो! आप के द्वारा विशेष चिन्तनीय हैं।
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