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दव्यसंगह। स्याधिकारशुद्धिपूर्वकत्वेन वृत्तिः प्रारभ्यते।" ___ मालवदेश में धारानगरी का स्वामी कलिकालसर्वज्ञ राजा भोजदेव था। उस से सम्बद्ध मण्डलेश्वर श्रीपाल के आश्रम नामक नगर में श्री मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकर के चैत्यालय में भाण्डागार आदि अनेक नियोगों के अधिकारी सोमनामक राजश्रेष्ठि के लिए श्री नेमिचन्द्र सिंद्धान्तिदेव ने पहले 26 गाथाओं के द्वारा लधुद्रव्यसंग्रह नामक ग्रन्थ रचा। पीछे विशेषतत्त्वों के ज्ञान के लिये बृहद्रव्यसंग्रह नामक ग्रन्थ रचा। उस की वृत्ति को मैं प्रारम्भ करता हूँ।
इस उद्धरण से स्पष्ट है बृहद्र्व्य संग्रह और लघुद्रव्यसंग्रह के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव हैं।
श्री डॉ. दरबारीलालजी कोरिया ने द्रव्यसंग्रह की प्रस्तावना में नेमिचन्द्र नाम के विद्वानों का उल्लेख किया है। इन के मतानुसार प्रथम नेमिचन्द्र गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार और क्षपणासार जैसे सिद्धान्तग्रन्थों के रचयिता हैं। इन की उपाधि सिद्धान्तचक्रवर्ती थी और गंगवंशी राजा रायमल के प्रधान सेनापति चामुण्डराय के गुरु भी थे। इन का अस्तित्वकाल वि. 1035 या ई. सन् 978 के पश्चात् हैं। ___ द्वितीय नेमिचन्द्र वे हैं, जिन का उल्लेख वसुनन्दि सिद्धान्तिदेव ने अपने उपासकाध्ययन में किया है और जिन्हें जिनागमरूप समुद्र की वेलातरंगों से ध्रुले हदय वाला तथा सम्पूर्ण जगत में विख्यात लिखा है -
सिस्सो तस्य जिणागम-जलणिहि-बेलातरंग-धोयमणो। संजाओ सयल-जए विक्खाओ णेमिचंदु ति॥ तस्स पसाएण मए आइरिय - परंपरागयं सत्य।
वच्छल्लयाए रइयं भवियाणमुवासयज्झयणं ।। इन नेमिचन्द्र के नयनन्दि गुरु थे और वसुनन्दि सिद्धान्तिदेव शिष्य।
तृतीय नेमिचन्द्र वे हैं जिन्होंने सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्र के गोम्मटसार पर जीवतत्त्वप्रदीपिका नाम की संस्कृत-टीका लिखी थी। यह टीका अभयचन्द्र की मन्दप्रबोधिका और केशववी की संस्कृत मिश्रित कन्नड़ टीका के आधार पर रची गयी है।
चतुर्थ नेमिचन्द्र सम्भवत: द्रव्यसंग्रह के रचयिता हैं। अतएव प्रथम और तृतीय नेमिचन्द्र को तो एक नहीं कह सकते। ये दोनों दो व्यक्ति हैं।