________________
'दव्वसंगठ
कौन ? अप्पा स्वात्मा, किस प्रकार? औरही अर्हस्वरूप, पुन: कैसे है: सुद्धो द्रव्य-भाव कर्म से रहित शुद्धात्मस्वरूप हैं। पुनः क्या विशेषता है? सुहदेहत्थो सप्त धातुओं से रहित हैं, पुनः क्या विशेषता है? णटुचदुधाड़कम्मो चार घातियाँ कर्मों को नष्ट किया है। पुनः क्या विशेषता है ? दंसणसुहणाणवीरियमईओ अनन्तदर्शन- सुख-ज्ञान और वीर्यमय हैं, समवशरण की विभूति से युक्त आत्मा ध्येय है, यह अर्थ है ।
भावार्थ : जिन्होंने चार घातियाँ कर्मों का विनाश किया है, जो अनन्तदर्शनअनन्तज्ञान- अनन्त सुख और अनन्त वीर्य रूप अनन्त चतुष्टय से सहित हैं, द्रव्यकर्म भावकर्म नोकर्म से रहित हैं, सप्तधातुओं से रहित शरीर से युक्त हैं, ऐसे अर्हन्त परमात्मा का ध्यान भव्यों को करना चाहिये || 50 ॥
उत्थानिका : इदानीं सिद्धो ध्येय इत्याह
गाथा : णकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा । पुरिसायारो अप्पा सिद्धो झाएह लोयसिहरत्थो ॥ 51 ॥ टीका : झाएह ध्यायत यूयम् । कोऽसौ ? अप्पा आत्मा, किं विशिष्ट : ? सिद्धो अशरीर:, पुनः किं विशिष्ट : ? लोयाग्गसिहरत्थो लोकाग्रशिखरस्थितः पुनः किं विशिष्टः ? णटुकम्पदेहो नष्टाष्टकर्मस्वरूप इत्थंभूतः, पुनः कथं भूत: ? लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा लोकान्तर्वर्तिसमस्तवस्तुज्ञायको दृष्टा च युगपद् कीदृगाकारो ध्येयः, पुरिसायारो नियतसिद्धपुरुषप्रतिमानराकृतिरूपः ।
—
उत्थानिका : अब सिद्ध ध्येय हैं, ऐसा कहते हैं
1
गाथार्थं : [ णट्टकम्मदेहो ] जिन्होंने नष्ट कर दिये हैं कर्म एवं देह [ लोयालोयस्स ] लोक और अलोक का [ जाणओ ] ज्ञायक [ दवा ] दर्शक
90