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देव्वसंगह
की क्या विशेषता है? जिणुत्तं जिनेन्द्र के द्वारा कहा हुआ चारित्र है। किस का ? णाणिस्स ज्ञानी का यथाख्यात चारित्र है, यह अर्थ है । वह क्या ? जं बहिरब्धंतर किरियारोहो जो बाह्य और आभ्यंतर क्रिया को रोकना है, उस में व्रताचरण आदि माक्रियाएं हैं तथा व्रती का दान यान] होना आभ्यंतर क्रिया है। क्रिया का निरोध क्यों किया जाता है ? भवकारणष्पणासर्द्ध संसार की उत्पत्ति का विनाश करने के लिए। गाथा - जिस ने श्वासों को जीत लिया है, जिस के नेत्र निष्पन्द हैं, जो सम्पूर्ण व्यापारों से मुक्त है, जो पर के वश नहीं है, वह योगी है, इस में कोई सन्देह नहीं है।
यह अर्थ है ।
भावार्थ : बाह्यक्रिया एवं आभ्यन्तर क्रियाओं के रुक जाने पर आत्मा में जो स्थिरता प्राप्त होती है, उसे परम सम्यक् चारित्र अथवा यथाख्यात चारित्र कहा जाता है। वही मोक्ष का कारण है | 146 ॥
पाठभेद : तं सम्मं परमचारितं
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तं परमं सम्मचारितं
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उत्थानिका : इदानीं द्विविधमपि चारित्रं मोक्षकारणं भवतीत्याह गाथा : दुविहं पि मोक्खहेउं झाणे झाऊण जं मुणी नियमा । तम्हा पयत्तचित्ता जूयं झाणं समब्भसह ॥ 47 ॥
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टीका : तम्हा पयत्तचित्ता जूयं झाणं समब्भसह तस्मात्कारणात्प्रयत्नचेतसः सन्तो यूयं ध्यानं समभ्यसत, तस्मात् कस्मात् ? यस्मात् पाउणदि प्राप्नोति कोऽसौ ? मुणी मुनिः कथम्? णियमा निश्चयेन, क्व प्राप्नोति ? झाणे ध्याने स्थित इत्यर्थः । किं प्राप्नोति ? दुविहं पि द्विविधमपि चारित्रम् । कथंभूतम् ? मोक्खहेउं मोक्षकारणमिति ।
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