Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 64
________________ दव्यसैगठ [हु ] निश्चय से [ असंखदव्वाणि ] असंख्यात द्रव्य हैं ।। 22 ॥ टीकार्थ : ते कालाणु असंखदव्याणि वे कालाणु असंख्यात द्रव्य हैं, ऐसा जानना चाहिये। वे कौन? जे ठिया जो स्थित हैं, हु निश्चयतः, कहाँ? लोयायासपएसे लोकाकाश के प्रदेश में। कैसे स्थित हैं? एक्केले एक-एक आकाश के प्रदेश पर एक-एक, इस तरह। इस का यह अर्थ है कि लोकाकाश के 10 प्रदेश में लाहैं, किष्क्रिय हैं, एक-एक आकाशप्रदेश पर एक-एक रूप से लोक को व्याप कर स्थित हैं, वे रूपादि गुणों से रहित अमूर्त हैं। वे लोक में व्याप्त हो कर किस प्रकार स्थित हैं? रयणाणं रासीमिव जैसे रत्नों की राशि व्याप कर स्थित रहती हैं, उसी प्रकार वे रहते भावार्थ : लोकाकाश असंख्यात प्रदेशी है। उस के एक-एक प्रदेश पर रत्नों की राशि के समान एक-एक कालाणु स्थित है। उन कालाणुओं को निश्चयकाल कहते हैं। काल द्रव्य अमूर्तिक है।। 22 ।। पाठभेद: लोयायासपएसे = लोयायासपदेसे एक्केके __= इलेके एकेको इक्केका 122|| उत्थानिका : एतानि षड् द्रव्याणि कालरहितानि पञ्चास्तिकायाः भवन्तीत्याह - गाथा : एवं छब्भेयमिदं जीवाजीवप्पभेददो दव्वं। उत्तं कालविजुत्तं णादव्वा पंच अत्थिकाया दु॥23॥ टीका : एवं पूर्वोक्तप्रकारेण उत्तं प्रदिपादितम्। किं तत्? दव्वं द्रव्यम्। इदं प्रत्यक्षीभूतम्, कतिभेदम्? छन्भेयं षड्भेदम्। कस्मात्? | 51

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