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दिव्वसंगठ
गाथा : एयपदेसो वि अणु णाणाखंधप्पदेसदो होदि । बहुदेसो उपधारा तेण य काओ भांति सव्वण्हू ॥ 26 ।। टीका : णाणाखंधप्पदेसदो वि अणु होदि बहुदेसो उवयारा नानापुद्गलस्कन्धरूपस्यैकप्रदेशोऽपि अणु बहुप्रदेशोऽपि भवति । कुत: ? उपचारात्, यतस्तस्य पुद्गलस्य परमाणोः पुनरपि स्कन्धरूपत्वे परिणतिरस्ति, कालाणोः पुनः परिणतिर्नास्ति स्कन्धरूपत्वेन, यतो रत्नानां राशय इव ते स्थितास्तस्मात्, तेण य काओ भांति सव्वण्डू तेन कारणेन वायत्वं वदन्ति पुरा
उत्थानिका : यहाँ पूर्वपक्षकार [ प्रश्नकर्त्ता ] का कथन है कि पुद्गल परमाणु एक प्रदेशी है, उस का भी कायत्व सिद्ध नहीं होता। उस का निराकरण करते हुए यहाँ कहते हैं कि
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गाथार्थ : [ एयपदेो] एक प्रदेशी [वि] भी [ अणु ] अणु [ णाणाखंधप्यदेदो ] नाना स्कन्धों का कारण होने से [ बहुदेसो ] बहुप्रदेशी [ होदि ] होता है। [य] और [ तेण ] इसलिए [ सव्वण्हू ] सर्वज्ञ [ उदयारा ] उपचार से [ काओ ] काय [ भांति ] कहते हैं || 26 |
टीकार्थ : णाणाखंधप्पदेसदो वि अणु होदि बहुदेसो उवयारा अनेक पुद्गल स्कंध रूप बनने की शक्ति वाला एक प्रदेशी अणु बहुप्रदेशी भी होता हैं। कैसे? उपचार से। चुंकि उस पुद्गल के परमाणु की पुनः स्कन्धरूप में परिणति होती हैं, कालाणु की पुनः परिणति स्कन्ध रूप से नहीं होती, क्योंकि रत्नों की राशि के समान वे स्थित रहते हैं। तेण य काओ भांति सव्वण्डू इस कारण से तत्त्वज्ञ पुद्गल परमाणु को काय कहते हैं ।
भावार्थ : अणु एकप्रदेशी है, परन्तु उस में स्कन्ध रूप से बनने की शक्ति
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