________________
दिवसंगह
टीका : दव्वासओ सणेओ द्रव्यास्रवः सः ज्ञेयः। कतिभेदाः? अणेयभेओ - अनेकभेदाः। केन कशित? जिएकखाटो जिनेन प्रतिपादितः। स कः? जोग्गं जं पुग्गलं समासवदि-योग्यं यत्पुद्गलं समास्त्रवति, केषां योग्यम्? णाणावरणादीणं-ज्ञानावरणादीनां, कर्मणामष्टानां, अष्टभावास्त्रवो हि द्रव्यास्रवस्य हेतुः।
उत्थानिका : अब दूसरे आस्रव के स्वरूप को कहते हैं - गाथार्थ : [णाणावरणादीणं ] ज्ञानावरणादि के [ जोग्गं] योग्य [ जं] जो [ पुग्गलं ] पुद्गल [ समासवदि] आता है [ स] वह [ जिणक्खादो] जिनेन्द्र कथित [ अणेयभेओ] अनेक भेदों वाला [दव्वासओ ] द्रव्यास्त्रव [णेओ] जानना चाहिये।। 31 ।। टीकार्थ : दध्वासओ सणेओ उसे द्रव्यास्रव जानो। उस के कितने भेद हैं? अणेयभेओ अनेक भेद हैं। किस ने कहा है? जिणक्खादो जिनेन्द्र के द्वारा प्रतिपादित है। वह कौन? जोग्ग जं पुग्गलं समासवदि जो योग्य पुद्गल आस्रव को प्राप्त होता है। किन के योग्य? णाणावरणादीणं ज्ञानावरणादि अष्ट कर्मों के, अष्टभावात्रव निश्चय से द्रव्यास्रव के हेतु हैं।
भावार्थ : भावास्तव का निमित्त पा कर ज्ञानावरणादि कर्मों के योग्य पुद्गल द्रव्य का जो आस्रव होता है, वह द्रव्यास्त्रव है। द्रव्यास्रव के अनेक भेद हैं ।। 31 ॥
पाठभेद
दव्वासओ
दव्वासवो
।।31||
विशेष : उत्थानिका में "द्रव्यास्रवस्य द्वितीयस्वरूपमाह" ऐसा लिखा है। उस स्थान पर "द्वितीय आस्रवस्य स्वरूपमाह" ऐसा होना चाहिये।