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दश्वसंगह
कहा जाता है, ऐसा जाना जाता है। "काल" इस शब्द को लोकवचन से | ग्रहण करना चाहिये। वह नित्य है, अन्यथा उस की द्रव्यता कैसे होगी? भावार्थ : एक पुद्गल परमाणु मन्दगति से गमन करते हुए एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर्यन्त जितने काल में गमन करता है, उतने काल को समय कहते हैं। समय-घंटा-धड़ी आदि सब व्यवहार काल है। प्रत्येक द्रव्य के परिणमन में मदत करने वाला वर्तना लक्षण रूप काल निश्चय काल है।। 21॥ पाठभेद : हु - य ।।21।।
उत्थानिका : तस्य निश्चयकालस्य किं स्वरूपमित्याह - गाथा : लोयायासपएसे एक्केक्के जे ट्ठिया हु एक्केक्को।
रयणाणं रासीमिव ते कालाणू असंखदव्वाणि ॥ 22 ।। टीका : ते कालाणू असंखदव्याणि, ते कालाणवोऽसंख्यातद्रव्याणि ज्ञातव्याः। ते के? जेठिया ये स्थिता:हु स्फुटम्, क्व? लोयायासपएसे लोकाकाशप्रदेशे। कथं स्थिता:? एक्केक्के एकैके एकस्मिन्नाकाशप्रदेशे एकैकपरिपाट्या। अयमर्थः लोकाकाश य यावन्तः प्रदेशास्तावन्तः कालाणवो, निष्क्रिया, एकैकाकाशप्रदेशेन एकैकावृत्यालोकं व्याप्य स्थिताः रूपादिगुणविरहिता अमूर्ताः। कथं लोकव्याप्यस्थिताः? रयणाणं रासीमिव यथा रत्नानां राशयः संघाततारारामेकम् (?) व्याप्य तिष्ठति तथा ते तिष्ठन्ति। उत्थानिका : उस निश्चयकाल का क्या स्वरूप है? सो कहते हैं - गाथार्थ : [एक्कक्के ] एक-एक [ लोयायास ] लोकाकाश के [ यएसे ] प्रदेश पर [जे] जो [ रयणाणं ] रत्नों की [ रासीमिव ] राशि के समान [एलेका ] एक-एक [ कालाणू ] कालाणु [ठिया ] स्थित हैं। [ते ] वे |
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