Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 66
________________ ALL TIVITET दिव्य संगठ गाथा : संति जदो ते णिच्चं अस्थि त्ति भणति जिणवरा जम्हा | काया इव बहुदेसा तम्हा काया य अस्थिकाया य ॥ 24 ॥ टीका : संति जदो ते णिच्चं ते पञ्चापि यतः यस्मात् कारणात् नित्यं सन्ति विद्यन्ते, स्वरूपेण । अस्थि त्ति भणति जिणवरा तस्मात् कारणात् विद्यन्ते इति जिनवरा : वदन्ति । अत्रास्तित्वं साधितम् । जम्हा बहुदेसा यस्माद्बहुप्रदेशास्ते काया इव शरीराणीव, अत्र कायित्वं साधितम् । तम्हा काया य तस्मात् कायाश्चेति । एवं मिलित्वा अस्थिकाया य अस्तिकायाश्च भण्यन्ते । अत्रपूर्वपक्ष:- ननु कायशब्दः शरीरे व्युत्पादितः, जीवादीनां कथमत्रोच्यते ? तेषामुपचारात् अध्यारोप्यते । कुतः उपचार : ? यथा शरीरं पुद्गलद्रव्यं प्रचयात्मकं तथा जीवादिष्वपि प्रदेशप्रचयापेक्षया इव काया इति । उत्थानिका : इन पंचास्तिकाओं का अस्तिकायत्व कैसे सिद्ध हैं? कहते हैं - गाथार्थ : [ दो ] क्योंकि [ ते ] वे [ णिच्चं ] नित्य [ संति ] विद्यमान हैं [ तेण ] इसलिए [ जिणवरा ] जिनेन्द्र [ अस्थि त्ति ] अस्ति ऐसा [ भांति ] कहते हैं। [य] और [ जम्हा ] क्योंकि [ काया ] काया के [ इव ] समान [ बहुदेसा ] बहुप्रदेशी हैं [ तम्हा ] इसलिए [ काया ] काय है [य] और [ अस्थिकाया ] अस्तिकाय है ॥24 ॥ 53 टीकार्थ: संति जदो ते णिच्चं वे पाँचों भी चुंकि जिस कारण से नित्य, स्वरूप की अपेक्षा से विद्यमान रहते हैं। अस्थि ति भणति जिणवरा उस कारण से वे " अस्ति" हैं, ऐसा जिनवर कहते हैं । यहाँ अस्तित्व सिद्ध किया गया। जम्हा बहुसा क्योंकि वे बहुप्रदेशी हैं। काया इव शरीरों के समान । 1

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