________________
[दव्वसंगह
समुद्घात के लक्षण को कहते हैं -
-
मूल शरीर को छोड़े विना जीव के प्रदेशों का उत्तर शरीर की ओर गमन होना, समुद्घात कहलाता है ।
[ गो. जी. 668 ]
वह प्रत्येकी, जैसे - तीव्र वेदना के अनुभव से मूल शरीर को छोड़े विना आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना वेदना समुद्घात है।
तीव्र कषाय के उदय से मूल शरीर को छोड़े विना परघात के लिए आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना कषाय समुद्घात हैं।
मूल शरीर को छोड़े विना किसी भी प्रकार की विक्रिया करने के लिए आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना विक्रिया समुद्घात है ।
मरण के समय में मूल शरीर को छोड़े विना जहाँ कहीं की बद्ध आयु है। इस स्थान को स्पर्श करने के लिए आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना, कषाय समुद्घात है।
अपने मन को अनिष्ट उत्पन्न करने वाले किंचित् कारण को देख कर उत्पन्न हुआ है क्रोध जिन को ऐसे संयमनिधान महामुनि के मूल शरीर को छोड़े विना सिन्दूर के पूंज की प्रभा वाला, बारह योजन प्रमाण दीर्घ, सूच्यंगुल के संख्येय भाग मूल विस्तार एवं नव योजन अग्र में विस्तार वाला, काहलाकृति [बिलाव के आकार का ] धारक, बायें कंधे से निकल कर बाय प्रदक्षिणा कर के हृदय के विरुद्ध वस्तु को भस्म कर के, उसी से ही संयमी के साथ स्वयं भी भस्म हो जाता है, द्वीपायन के समान। यह अशुभ तैजस समुद्घात
है ।
लोक को व्याधि- दुर्भिक्षादि से पीड़ित देख कर उत्पन्न हुई है कृपा जिन को, ऐसे परम संयम निधान महर्षि के मूल शरीर को छोड़ कर सफेद आकृति वाला, पूर्वकथित देह प्रमाण का धारक पुरुष दक्षिण कंधे से निकल कर
21