Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 55
________________ दव्यसंग टीकार्थ : पुद्गल द्रव्य रूपादिगुणों से युक्त होने से मूर्तिक है। शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं। शेष व्याख्यान पूर्व में ही किया जा चुका है। भावार्थ : पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पाँच अजीवद्रव्य हैं। रूपादि गुणों से सहित होने के कारण पुद्गल मूर्तिक है। शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं। इन द्रव्यों का वर्णन प्रथम गाथा में किया जा चुका है।। 15 ।। पाठभेद: अज्जीओ : अज्जीवो। आयासो = आयासं ।। 15 ।। .-.-. उत्थानिका : तस्य पुद्गलस्य किं स्वरूपं पर्याया इत्याह - गाथा : सहो बंधो सुहुमो थूलो संठाणभेदतमछाया। उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्यस्स पज्जाया।। 16॥ टीका : पुग्गलदव्यस्स पजाया एते पुद्गलद्रव्यस्य पर्यायाः, के ते? आत्मनः परिस्पंदान्नानाप्रकाराणुसंघटनात्ताल्वोष्ठपुटव्यापारेण करचरणकाष्ठपाषाणादिपरस्परं संघर्षणे च निष्पद्यते शब्दः। बंधो स्निग्धं परमाणुद्वयेन सह रूक्षपरमाणूनां चतुर्णां संश्लेषः एकेन स्निग्धेन सह त्रयाणां रूक्षाणां संश्लेषः, स्निग्धपरमाणुत्रयेण सह पंचानां रूक्षाणां संश्लेष इति, बंधमुपलक्षणमेतत्, सुहुमो परमाणुः सूक्ष्मः, थूलो, स्कन्धरूपत्वस्थूलः, संठाणभेद, समचतुरस्त्रसंस्थानं, न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थानं, स्वातिसंस्थानं वामलूराकृतिरित्यर्थः, वामनसंस्थान, हुंण्डकसंस्थानं चर्मकरदृतिरिव प्रकृतिरित्यर्थः। कुब्जकसंस्थानमिति, तम अन्धकारः, छाया वृक्षादिभवा, उज्जोदा ताराचन्द्रमणिमाणिक्यादिभवा। आदव आतपोऽग्निसूर्यभवः। उत्थानिका : उस पुद्गल की पर्यायों का क्या स्वरूप है? सो कहते हैं - 42

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