Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 33
________________ - - दिव्त्रसंगह सोऽयं केवलिसमुद्घातः। स एव णिच्छयणयदो निश्चयनयापेक्षया, असंखदेसो वा असंख्याता लोकमात्रा वा शब्दोऽत्र स्फुटवाची इत्युक्तस्वदेहप्रमाणं प्रतिपादिनः। उत्थानिका : वह आत्मा व्यवहार और निश्चय की अपेक्षा से इस प्रमाण है, ऐसा बताते हुए कहते हैं - गाथार्थ : [चेदा] आत्मा [ववहारा] व्यवहार से [असमुहदो] असमुद्धात अवस्था में [उवसंहारप्पसप्पदो ] उपसंहार व प्रसर्पण के कारण [ अणुगुरुदेहपमाणो] छोटे बड़े प्रमाण का धारक है [वा] और [णिच्छयणयदो] निश्चय नय से [असंखदेसो] असंख्यात प्रदेशी है।। 10॥ टीकार्थ : चेदा अणुगुरुदेहपमाणो वह आत्मा व्यवहार नय के आश्रय से सूक्ष्म-स्थूल देह के प्रमाण है। जब कर्मवशात् कुन्थु पर्याय को ग्रहण करता है, तब उस देह के प्रमाण है। जब हाथी प्रमाण पर्याय को ग्रहण करता है, तब उस देह के प्रमाण हैं। क्यों? उवसंहारप्पसप्पदो उपसंहार और प्रसर्पण से, क्योंकि आत्मा उपसंहार और विस्तार धर्मवाला है। इस में कौन सा दृष्टान्त है? जैसे प्रदीप बड़े बर्तन से आच्छादित होने पर उस बर्तन को प्रकाशित करता है, छोटे बर्तन से प्रच्छादित होने पर उसी बर्तन को प्रकाशित करता है। परन्तु असमुहदो सप्त समुद्घात को छोड़ कर, वहाँ लघु-गुरुत्व का अभाव है। समुद्घात के भेदों को कहते हैं - वेदना, कषाय, वैक्रियक, मारणान्सिक, तेजस, छठवा आहारक और सातवाँ केवलियों का समुद्घात है। [गो. जी. 667] 20

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