Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 51
________________ A- -maunics दव्वसंगह दर्शनमार्गणा : इस का वर्णन गाथा क्र. 4 में किया गया है। लेश्यामार्गणा : कषायानुरंजित योग की प्रवृत्ति लेश्या है। उस के छह भेद हैं - कृष्ण-नील-कापोत-पीत-पद्म-शुक्ल । प्रथम से चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीवों के छहों लेश्याएं होती हैं। पाँचवें से सातवें गुणस्थान तक तीन शुभलेश्याएं होती हैं। 8वें गुणस्थान से 13वें गुणस्थान तक शुक्ललेश्या होती है। अयोग केवली अवस्था एवं सिद्धों में कोई लेश्या नहीं होती। उत्थानिका : ते च जीवाः सकलकर्मक्षयात्सिद्धा भवन्तीत्याह - गाथा : णिक्कम्मा अट्ठगुणा किंचूणा चरमदेहदो सिद्धा। लोयाग्गठिदा णिच्चा उप्पादवएहि संजुत्ता॥14॥ टीका : ते च पूर्वोक्ताः जीवाः सिद्धाः भवन्ति। कथंभूता सतः? णिक्कम्मा ज्ञानावरणीयदर्शनावरणीयवेदनीयमोहनीयआयुर्नामगोत्रान्तराया इत्यष्टकर्मरहिताः। अट्ठगुणा सम्मत्तणाणदंसणवीरियसुहमं तहेव अवगहणं। अगुरुलाहुमवावाहं अट्ठगुणा होति सिद्धाणं ॥ अत्रानन्तानुबन्धिक्रोधमानमायालोभमिथ्यात्वसम्यम्मिथ्यात्वसम्यक्त्वसंज्ञानां सप्तप्रकृतीनां क्षयः क्षायिकं सम्यक्त्वम्। अशेषविशेषतः सकलपदार्थेषु रुचि इत्यर्थः। तस्माच्च ये उत्पन्नाः दर्शनज्ञानमूलभूताः परमानन्दस्वरूपसंवेदका आत्मपरिणामास्ते एव सम्यक्त्वम्। एतदेवानन्तसुखमुच्यते। युगपत्सकलपदार्थज्ञातृत्वं ज्ञानम्। युगपदशेषपदार्थावलोकनं दर्शनम्। उक्तानामनन्तासुखादीनां ससानां गुणानां - 381

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