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दव्यसंगह वर्तमान काल में जीता है, भविष्यत् काल में जियेगा और अतीत काल में जीवित रहा था, वह जीव है। निश्चयनय से जो सत्ता-सुख-बोध और चेतना रूप चार प्राणों के साथ जीवित रहता है, वह जीव है।
उस प्राण को कहते हैं - पाँच इन्द्रियप्राण, मन-वचन-काय ये तीन बलप्राण, श्वासोच्छ्वास और आयु ये सब दश प्राण होते हैं।
गोम्मटसार जीवकाण्ड - 130] इस प्रकार जीवद्रव्य का वर्णन हुआ।
अजीव द्रव्य का क्या स्वरूप है? वह पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल रूप है।
द्रव्य का क्या लक्षण है? द्रवति द्रोष्यति अदुद्रुवदिति द्रव्यम्। द्रवति - पर्याय को प्रास होता है, द्रोष्यति - पर्याय को प्रास करेगा, अदुगुवदिति - पर्याय को पूर्व में प्राप्त कर चुका है। वह द्रव्य भी गुणपर्यायमय है।
द्रव्य गुणपर्यायवान् होता है। [तत्त्वार्थसूत्र 5/38 ]
जो अन्वय के साथ उत्पन्न होते हैं, वे गुण हैं। व्यतिरेक से जो अभिन्न है, वह पर्याय है। वे गुण दो प्रकार के होते हैं - साधारण और असाधारण । पर्याय उत्पाद-व्ययरूप होती है।
वहाँ जीव के अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व और अमूर्तत्व ये साधारण गुण हैं। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र नामक विशेष गुण हैं। देव-मनुष्य-नरक-तिर्यंच, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, वीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ये पर्याय हैं।
पुद्गल के स्वरूप को कहते हैं - अविभागी परमाणु द्रव्य पुद्गल है और जल व अग्नि आदि के द्वारा जो |